किसी शौहरत की ख्वाइश नही ऐ खुदा मुझे,
बस उसकी खिडकी के सामने मेरा बसेरा हो
रात चाहे गुजरे जितनी भी नागवार
बस उसके मुस्कान के साथ मेरा सवेरा हो
सुखा पडा है जंगल मेरे दिल का
कभी उसके मोहब्बत की बरसात हो
खो जाये नूर इस चांद से मुखडे का
इतनी बेरहम कभी ना ये रात हो
कैसे उतारू उसे पन्नोंपे
वो एक ऐसी किताब है जो कभी ना मुकम्मल हो
तूफान मे भी फस जाऊ अगर, कोई गम नही
बस जहा मेरे पाव फसे वहा उसके इश्क की दलदल हो
कोई और है उसके दिलमे, किसी और को चाहती है
पर वक्त का भी कोई ऐसा तकाजा हो
कभी नही आनेवाली उसकी डोली मेरे घर जानता हूँ मैं
पर ऐ खुदा, उसकी बारात से अच्छा मेरा जनाजा हो
✒️Vishal Adbal
(AV Writes)
8265091693