:::::बचपनवाला स्कूल:::::
जिंदगी महक जाती है ,यह घडी भी रुक जाती है
जब याद आती है उन दिनो की, मेरी आंख भर आती है
यारों संग की वो शरारते
दुनियादारी से अंजान सच्ची दोस्ती की वो बाते
अनगिणत सपने
कोई ना पराया, सब थे अपने
लाईन लगाकर थाल मे खाई हुई वो खिचडी
बदमाशी करनेपर पर टिचर्स ने मारी हुई वो छडी
मार खाकर भी मस्तीखोरी से बाज ना आते थे वो भी क्या जमाना था,
वो बचपनवाला स्कूल ही अच्छा था , ना किसीकी फिकर, ना किसी गम का ठिकाना था
दुसरी क्लास के बच्चों से बेवजह लडना
एक दोस्त को किसी ने हाथ भी लगाया तो सारी क्लास का उसे धोना
टिचर्स के मारने पर घर रोते रोते जाना
और घर से मा पापा को लेकर आना
पर पापा का ही हमे टिचर्स के सामने मारना
ज्यादा बदमाशी करे तो और मारों मॅडम इसे, ऐसा दर्द भरा वाक्य हमारे कानों पर पडना
यह किसी और का नही, हमारे पापा का ही कहना था,
फिर भी वो बचपनवाला स्कूल हि अच्छा था, ना किसी की फिकर ना किसी गम का ठिकाना था
:::::बचपनवाला स्कूल-२:::::
प्यार,मोहब्बत, इश्क सबसे अंजान थे
हम तो अपने दोस्तो की जान थे
तंग आ जाते थे घरवाले हमारे स्कूल के झगडो से
हम तो फसादों की चलती फिरती दुकान थे
जितने बदमाश थे उतने ही पढाई मे होशियार
टॉप कर चुके थे स्कूल मे ७ बार
आज जीत भी जाए कोई बडा इनाम, पर वो स्कूल के सर्टिफिकेटसे ही हमारे होंठो पर पलता खुशियों का आशियाना था
वो बचपनवाला स्कूल ही अच्छा था
ना किसी की फिकर ना किसी गम का ठिकाना था
१ रुपये की टॉफी कि खुशी पुरे स्कूल मे गुंजती थी
दोस्ती की हसीन यादे लास्ट बेंचपर सजती थी
गाव मे पानी भरने कि वजह से मिली वो छुट्टी
हमारी नादानियों से आज भी महकती हुई स्कूल कि वो मिट्टी
आज भी याद है, टीचर्स के साथ एक टिफिन मे खाया हमने खाना था
वो बचपनवाला स्कूल हि अच्छा था, ना किसीकी फिकर ना किसी गम का ठिकाना था .
जब स्कूल छोडा, दोस्तों से बिछडने का गम था
स्कूल को छोड जाने के खयाल से रुक जाता हमारा दम था
आज भी मूड जाते है कदम उस मंदिर की तरफ
जो हमारे लिये घर ज्यादा और स्कूल कम था
और क्या कहू, वो भी क्या जमाना था,
वि बचपनवाला स्कूल ही अच्छा था,
ना किसी की फिकर, ना किसी गम का ठिकाना था |
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